भारतीयों की प्रेरक (inspirational) कहानियां की शृंखला में हम उन सब भारतीयों के बारे में बताएँगे जिनके बारे में जानकर आपको भी अपने लिए अपने समाज और अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने का जोश आएगा। ये सब वे लोग हैं जिनको अपनी लोकप्रियता से कोई लेना देना नहीं था इन्होंने जो किया वो अपने मन से अपनी खुद की अंदर की आवाज को सुन कर किया। इन्होने हर मुश्किल का डट कर मुकाबला किया और अपने सपनों को साकार किया। इनके बारे में जानकर आपको भी अपने देश के इन लोगो पर नाज होगा।

नारायणन कृष्णन (Narayanan Krishnan): बेसहारा लोगो का सहारा।

NARAYANAN KRISHNAN
NARAYANAN KRISHNAN

एक सैफ(Chef) जो भूखे गरीब लोगो के लिए खाना बनता है, एक अपना जो समाज से ठुकराये लोगो को अपनाता है एक सेवक जो लाचार लोगो की सेवा करता है, एक इंसान जो बेसहारा लोगो का सहारा है, एक इंसान जो काफी लोगो के लिए भगवान है हम बात कर रहे है मदुरै, तमिलनाडु (Madurai, Tamil Nadu) रहेने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता नारायणन कृष्णन (Narayanan Krishnan) की जिनके जीवन का लक्ष्य है हर भूखे को खाना और हर बेसहारा इंसान के लिए सहारा देना।

नारायणन कृष्णन (Narayanan Krishnan) ने अपनी पढाई समाप्त करने के बाद अपने करियर की शुरुवात एक प्रतिष्ठित पाच सितारा होटल (Taj Hotels) में सैफ(Chef) की नौकरी से की। वह उनके अच्छे काम को सहरा गया उनको इनाम भी दिए गए। स्विट्जरलैंड में उनको एक पाच सितारा होटल में जॉब करने का ऑफर भी मिल गया। जब नारायणन जाने से पहले अपने घर पर सबसे मिलने गए तो मन्दिर जाते हुए उन्होंने एक बूढ़े गरीब इंसान को अपने भोजन के लिए मानव अपशिष्ट (human waste) को खाते हुए देखा। ये देख कर कृष्णन को अंदर से बहुत बुरा लगा उन्होंने तभी उस आदमी के लिए खाने का इतजाम किया। और उस दिन नारायणन कृष्णन ने फैसला किया कि उन्हें अपनी बाकी जिन्दगी में क्या करना है उन्हें उन लोगों की मदद के लिए अपना जीवन समर्पित करना है जो अपनी खुद की मदद नहीं कर सकते। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने गृहनगर (Hometown) में बेघर और मानसिक रूप से विकलांग लोगो को खाना खिलाना शुरू कर दिया।

सन 2003 में नारायणन कृष्णन ने अक्षय ट्रस्ट का गठन किया जो मदुरै, तमिलनाडु में बेघर और मानसिक रूप से विकलांग को खिलाने के लिए मदद करती है। नारायणन कृष्णन अपनी ट्रस्ट से 425 लोगो को तीनो टाइम का खाना प्रदान करते है। इसके अलावा वो इन सब बेघर और मानसिक रूप से विकलांग लोगो के बाल कटाने और शेव करने का काम भी करते है। कृष्णन को सीएनएन(CNN) द्वारा सन 2010 की दुनिया के शीर्ष दस नायकों में से एक के रूप में मान्यता दी गई थी।

सिंधुताई सप्कल (Sindhutai Sapkal): अनाथ बच्चों की माँ

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कभी कभी परेसानिया मुसीबत इंसान को इतना दृढ़ बना देती है कि वो ना सिर्फ अपनी बल्कि जाने कितने लोगो की जिन्दगी बना देते है। उनके पास कोई सुविधा हो या ना हो फिर भी वो काम करके दिखा देते है जो ओर लोग सुविधाओं को होते हुए भी हम नहीं कर पाते हैं।
“मैं यहाँ उन सब के लिए हूँ जिनका कोई नहीं है” ये कहना है ममता से भरी माई कह कर पुकारे जाने वाली सिंधुताई का।

सिंधुताई सप्कल का जन्म पूर्वी महाराष्ट्र के नवरगांव के गरीब परिवार में हुआ था। शिक्षा के नाम पर उन्हें सिर्फ कक्षा चार तक ही शिक्षा प्राप्त हुई थी। सिंधुताई का विवाह 9 वर्ष की अल्प आयु में 30 वर्ष के युवक के साथ कर दिया गया था। सिंधुताई को पढ़ने का बहुत शौक था। इसलिए जिस पेपर में पति सामान लपेट कर घर लाते, सामान रखने के बाद वह उसे पढ़ने लगती। पति को उनकी यह बात कभी अच्छी नहीं लगती थी, इसलिए अक्सर उन्हें इस अपराध के लिए पति के हाथों पिटाई सहनी पड़ती। तीन बेटों को जन्म देने के उपरांत चौथी बार जब वे गर्भवती हुई तो पति ने उन्हें छोड़ दिया। उनकी चौथी संतान जो कि एक बेटी थी उसका जनम एक गोशाला में हुआ था। अपनी नवजात बेटी को लेकर सिंधुताई अपनी माँ के घर चली गयी परन्तु उनकी माँ के घर की भी माली हालत ठीक नहीं थी तो वहा से भी कुछ दिनों बाद जाना पड़ा। अपनी दुखी जिन्दगी से परेशान होकर सिंधुताई ने दो बार आत्महत्या का भी प्रयास किया। पहली बार असफल रही। दूसरी बार जब वे आत्महत्या करने जा रही थी बेटी की रोने की आवाज ने उनके बढ़ते कदमों को रोक दिया और यही वह पल था जिसने उनकी पूरी सोच को बदल दिया तथा जीने का एक उद्देश्य भी दे दिया। उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें न सिर्फ अपनी बेटी ममता के लिए बल्कि उस जैसे अनेक बच्चों के लिए जीना है, जिन्हें समाज अपनाने को तैयार नहीं है।

अपने दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास के बल पर आज उनके साथ 1050 अनाथ बच्चे है जिनकी देखभाल वो अपने बच्चो के समान ही करती है। सिंधुताई के इतने बड़े परिवार को चलाने के लिए कोई व्यवसायिक प्रबंधन कार्य नहीं करता बल्कि उन्ही के परिवार के तीस बच्चे जिनकी उम्र तीस वर्ष या उससे थोड़ी ज्यादा है इसे चलाने में माई की मदद करते हैं।

अन्नत महादेवन की फिल्म “मी सिंधुताई सपकाल” जो 2010 में आई थी जो सिंधुताई के जीवन से प्रभावित होकर ही बनाई गयी थी ने अचानक उन्हें पूरी दुनिया में लोकप्रिय बना दिया है। आज वे लोगों की प्रेरणा स्त्रोत बन गई है। देश-विदेश में लोग उन्हें भाषण देने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।

अब तक सिंधुताई को 272 पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। वो अपने को मिलने वाला सब पैसा उसके अनाथ बच्चों के लिए घर बनाने के लिए जमीन खरीदने के लिए इस्तेमाल करती है।

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