economy crisis

क्या देश में मंदी आने वाली है? क्या भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट है ? क्या आज के माहोल में एक अच्छी नौकरी या एक नया व्यापार शुरू करना मुश्किल है? क्या विदेशी निवेशक भारत में पैसे लगाने से कतरा रहें है? क्या भारत के बड़े व्यापारी भारत में व्यापार न कर के और देशो में अपना व्यापार बढ़ाने की सोच रहे है? क्या भारत में बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है? देश के बड़े उद्योग जिन से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ता है क्या वो नुकसान में है ?

जी हाँ! ऊपर लिखीं सारे तत्य पूरी तरह से सच है। देश में आज जो माहोल है उसमें इन सब बातों पर आम जनता है ध्यान ही नहीं है।

मैं कांग्रेसी नहीं हूँ न ही मैं बीजेपी भक्त हूँ। मतलब मैं किसी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं हूँ मैं अपने देश से जुड़ा हूँ।

सबसे पहले मैं आपको वर्ल्ड बैंक का डाटा बताता हूँ। वर्ल्ड बैंक के अनुसार भारत बढ़ती अर्थव्यवस्था के 5th स्थान से 7th स्थान पर आ गया है।

NSSO (The National Sample Survey Office’s) के जॉब सर्वे के अनुसार 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6% पर आ गई जो पिछले 45 सालो में सबसे ज्यादा है।

2014 से 2019 में नोकरियो में सालाना बढ़त सिर्फ 0.7% ही हुई है।

2016-17 जीएसटी लागू होने से पहले सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी की दर 21.33 फीसद थी जो 2017-18 में जीएसटी लागू होने के बाद घटकर करीब एक-चौथाई यानी 5.80 फीसद रह गयी।

क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट बताती है कि 2018 में सभी प्रमुख राज्यों की विकास दर उनके पांच साल के औसत से नीचे आ गई.

2013 से 2019 तक रुपए के मूल्य में 28% तक गिरावट हुई है।

देश की तीन सबसे बड़े उद्योग में इस समय बहुत ज्यादा गिरवाट है वे उद्योग है हाउसिंग, ऑटोमोबाइल और कंस्यूमर गुड्स (FMCG)

भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग का भारत के जीडीपी में करीब 10% योगदान होता है। वही ऑटोमोबाइल उद्योग आज इतिहास की सबसे भयानक मंदी से गुजर रहा है और सरकार से मदद मांग रहा है। कुछ बड़ी कम्पनियो की बात करें तो –

मारुती की जुलाई 2019 में करीब 33 से 36 प्रतिशत का नुकसान हुआ है।
अशोक लेलैंड को करीब 14 प्रतिशत का नुकसान है।
महिंद्रा ट्रैक्टर में करीब 12 प्रतिशत का नुकसान है।

पुरे देश ऑटोमोबाइल उद्योग से जुड़े डीलर्स की करीब 280-285 डीलरशिप बंद हो गयी है जिनसे करीब 30,000 लोग बेरोजगार हो गए है और विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही चलता रहा तो ऑटोमोबाइल उद्योग में करीब 10 लाख नौकरिया और जाएँगी।

इतना सब होते हुए इस सरकार उद्योग को बचने के लिए मदद करने की जगह सरकार ने ऑटोमोबाइल पार्ट्स पर आयात शुल्क (import duty) बढ़ा दी, बीमा, पंजीकरण के शुल्क बढ़ा दिए जिससे सेल गिर गयी। बाजार में खरीदार नहीं है तो नई गाड़िया, मोटर साइकिल्स बिक नहीं रही जिस की वजह से कंपनियों ने प्रोडक्शन कम कर दिया है। कर्मचारियों के वेतन नहीं बढ़ रही बल्कि निकाला जा रहा है जो है उनकी भी तनख़्वाह कम की जा रही है।

रियल एस्टेट उद्योग की बात करें तो इस को दूसरा सबसे ज्यादा नौकरिया देने वाला नौकरियोंमाना जाता है। लेकिन आज इसकी भी हालत बहुत ख़राब है। पिछली सरकार ने इस उद्योग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया बिल्डर्स अपनी मनमानी से इससे चला रहे थे फिर इसको व्यवस्थित तरीके से चलने के लिए नयी सरकार RERA ले कर आयी। फिर GST लाया गया और धीरे-धीरे रियल एस्टेट उद्योग भी बर्बाद हो गया।

आज भारत के 10 बड़े शहरो में करीब 11-13 लाख मकान बन कर तैयार है लेकिन उनको खरीदने वाला कोई नहीं है एक अनुमान के अनुसार इनकी कीमत करीब 1000-1100 करोड़ के लगभग है। इस उद्योग में अब तक निवेशकों का करीब 149 अरब डॉलर डूब चुके है।

इस मंदी का असर यह है कि FPI (foreign portfolio investment) से बाजार में पैसा आना बंद हो गया है जुलाई 2019 की बात करें तो एफपीआई FPI से 11,000 करोड़ रुपये से अधिक निकल लिए गए है।

टेलीकॉम उद्योग की बात करें तो वोडाफोन और आईडिया का एक तिमाही में 5000 करोड़ का नुकसान हुआ है उनके शेयर 10 से 7 रुपए पर आ गया। एयरटेल को एक तिमाही में 2500 करोड़ का नुकसान है।

ये सब अकड़े देश के बड़े उद्योगों के है। देश के छोटे उद्योगों में तो बुरा हाल है। कितने ही उद्योग बंद हो गए कितने ही लोग बेरोजगार हो गए है।

ऐसा क्या हुआ जो उद्योगों का इतना बुरा हाल है कही न कही सरकार की जल्दी में लायी गयी नीतियाँ जैसे GST, नोटेबंदी और फिर जल्दी-जल्दी उनमें फेर बदल करना ही इस सब का जिम्मेवार है।

सरकार इन नीतियों को अच्छे इरादे से लायी थी किंतु कही न कही इनको अमल में लाने में कमी रह गयी।

मेरा इस लेख को लिखने का मकसद यही था कि आम जनता को ये पता चले कि अभी देश की अर्थव्यवस्था का बहुत बुरा हाल है। इस वक़्त कई देशो में मंदी की मार है इससे पहले कि भारत में भी ये मार भयानक ना हो जाए सरकार को इस ओर जल्दी से कुछ कदम उठाने पड़ेंगे।

Update on 03 सितम्बर 2019:

  • नोटेबंदी से जिन परेशानियों से छुटकारा मिलना था वो मामले और बढ़ गए जैसे- 2018-19 में 500 के नकली नोटों में 121% की बढ़ोतरी हुई है (Livemint)। बैंको में धोखाधड़ी के मामलो में 73.8% की बढ़ोतरी हुई है (the indian express)
  • जीडीपी विकास दर पिछले 17 साल में सबसे कम है।
  • सरकार रोजगार और बेरोजगारी पर कोई आकड़ा उपलब्ध नहीं कर रही है।
  • जिस देश को कृषि प्रधान देश कहा जाता है आज उसकी कृषि विकास दर 5.1% से 2% पर आ गयी है।
  • कपड़ा उद्योग(textile industry) में मंदी के चलते करीब 80,000 करोड़ कपास की बिक्री पर ख़तरा मंडरा रहा है।
  • विनिर्माण क्षेत्र (manufacturing area) की विकास दर 12% से 0.6% पर आ गयी है। छोटे व्यापारी और छोटी विनिर्माण इकाइयाँ नोटेबंदी से अब तक लगभग खत्म हो गए है।
  • घरेलू मांग (Domestic demand) में भी भरी गिरवाट है वस्तुओं के उपयोग की दर (consumption growth) पिछले 18 महीनो में सबसे कम है।
  • बीएसएनएल (BSNL) में करीब 54000 नौकरिया खतरे में है।
  • ONGC को 2018 में 4000 करोड़ का नुकसान हुआ।

अगर आपको हमारा ये लेख – “बाजार की मंदी और मुरझाती भारतीय अर्थव्यवस्था (Market slowdown and indian economy crisis)” पसंद आया हो तो अपनी प्रतिक्रिया(comments) जरूर लिखें।

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